रिश्तो में मिठास तभी तक रहती है
जब तक वो दिल से निभाए जाए।
जब रिश्तो पर दिमाग हावी हो जाए
तो उनकी मिठास भी कंही खो जाती है।
रिश्तो में मिठास तभी तक रहती है
जब तक वो दिल से निभाए जाए।
जब रिश्तो पर दिमाग हावी हो जाए
तो उनकी मिठास भी कंही खो जाती है।
Relation is like a glass
A scratch on one side
Will reflact on any side
Always handel feeling carefully
Because
Scratch can,t be removed.
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जिम्मेदारिया जब
बोझ लगने लगे
तब
जीवन की डगर
आसां नही रहती।
अगर आप “ना ” नही बोल पाते है
तो तैयार रहिये
कदम-कदम पे
मतलबी लोगो से मिलने के लिए।
प्रद्युम्न की मौत के 10 दिन बाद भी मासूम बच्चे का ख्याल जेहन से निकल ही नही रहा है।7 साल के मासूम की इतनी निर्ममता से हत्या? ईश्वर की बनाई अनुपम कृति मानव इतना निर्दयी कैसे हो सकता है।क्या एक बार भी उसे बच्चे के मासूम चेहरे पर दया नही आई। ऐसे हत्यारे के लिए तो मौत की सजा भी कम है क्योंकि मौत तो जीवन बंधन से मुक्ति है और मुक्ति इनकी सजा नही हो सकती ।इन्हें तो तड़प तड़प कर पूरी जिंदगी काटने की सजा मिलनी चाहिए ताकि इनका जीवन ऐसे लोगो के लिए सबक बन सके।
हम इंसानों का दिमाग भी एक तरह का “डस्टबिन” ही है। क्यूंकि हम इसमें अपने बुरे अनुभव,बुरी यादे,बुरे लोग ही संभाल कर रखते है। हमारे साथ अगर नौ अच्छी बाते हुई है और एक बुरी बात तो हमारे दिमाग में सिर्फ वो बुरी बात ही स्टोर रहती है और अच्छी बाते हम भुला देते है। और उस एक बात को सोच कर हम दुखी भी रह लेते है।
यही बात रिश्तो में भी लागु होती है। कोई एक रिश्ता जिससे हमारे बुरे अनुभव,बुरी यादे जुडी है हमारे ध्यान का केंद्र बिंदु हमेशा वही रहता है और हम दुखी परेशान रहते है।इसके चलते हम अपनी जिंदगी की बाकी खुशियों को महसूस ही नही कर पाते। जिंदगी में सबको सब कुछ बुरा नही मिलता किसी को बहुत ध्यान रखने वाले माता-पिता मिले है तो किसी को बेहद प्यार करने वाला जीवन साथी,किसी के पास बेहद प्यारे-प्यारे बच्चे है तो किसी को बहुत परवाह करने वाले,प्यार करने वाले भाई- बहन मिले है।ऐसे रिश्ते जिन्हें पाकर हम खुद पर गर्व महसूस कर सके,खुद को खुश रख सके। लेकिन नही ,हमारी नकारात्मक सोच हमे ऐसा नही करने देती।
अगर हमे खुश रहना सीखना है तो सबसे पहले हमे अपनी नकारात्मक सोच पर अंकुश लगाना होगा ताकि हमे मिली खुशियों को हम महसूस कर पाए,खुल कर खुश होकर जी सके।
कहते है वक्त हर घाव भर देता है पर क्या शब्दों से लगे घाव भी वक्त भरता है?
शयद इसीलिए रहीम जी ने कहा है-
“रहिमन धागा प्रेम का,मत तोड़ो छिटकाय
टूटे से फिर ना जुड़े,जुड़े गाँठ पड़ जाए।”
लोग हमारे बारे में जो भी सोचते है वो उनके अपने विचार होते है न की हमारा स्वभाव और व्यवहार ।
स्त्री को प्यार और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति माना जाता रहा है। पर आजकल स्त्री में जो खुद को पुरुष के बराबर साबित करने की प्रतिस्पर्धा चल रही है वह उचित नही है। इश्वर ने स्त्री व् पुरुष को एक इकाई बनाया है ,एक सिक्के के दो पहलू।एक का अस्तित्व दुसरे के बिना व्यर्थ है। फिर प्रतिस्पर्धा की भावना क्यों? क्यों हम ये साबित करे की स्त्री पुरुष के बराबर है और क्यों पुरुष स्त्री को नीचा दीखाने की कोशिश करे।स्त्री इसलिए स्त्री है की उसमे सत्रित्व है और पुरुष इसलिए पुरुष है की उसमे पॊरुश तत्व है दोनों के कर्तव्य क्षेत्र भिन्न है। पुरुष पिता है तो स्त्री माता है दोनों में से किसी के योगदान को कम नही आँका जा सकता है और ना ही तुलना की जा सकती है। भेद को प्रक्रति प्रदत्त है तो फिर समानता कैसी?